शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

YAADEN (18)यादें (१८)

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लोहड़ी का त्यौहार आने पर छोटे- बड़े बच्चे घर-घर से लोहड़ी मांगते थे - 
सुन्द्रिये- मुंदरिये हो ! ਸੁੰਦ੍ਰਿਏ  ਮੁੰਦਰੀਏ  ਹੋ !
तेरा कौन वचारा हो !! ਤੇਰਾ ਕੌਣ ਵਚਾਰਾ  ਹੋ !!
दुल्ला भट्ठी वाला हो !!! ਦੁੱਲਾ ਭਟ੍ਠੀ  ਵਾਲਾ ਹੋ !!!
दूल्ले धी विहाई हो !!!! ਦੁੱਲੇ ਧੀ ਵਿਹਾਈ  ਹੋ !!!!
प्राप्त लकड़ियों और मूंगफली आदि से गली में लोहड़ी जलाई जाती थी घर-घर में सब अपने -अपने पूर्वज-पितरों को ध्यान करके घर के सभी सदस्य अपने- अपने लकडियो के मुट्ठे अग्नि में डालते थे. हम बच्चों के लिए लोहड़ी की अग्नि में सुए गर्म करके मूंगफली, गज्जक, रेवाड़ी, पतासे, खोपरा, छुहारे, चीनी के मीठे व् रंग-बिरंगे खिलोने व कभी कभार बर्फी या सख्त किस्म की मिठाई पिरो कर हांर बनाये जाते थे, दुसरे दिन सुबह नहा कर नए कपडे व हर पहन कर सब घरों में जाकर बड़ों के चरण- स्पर्श करने होते थे. किसी बच्चे या दुल्हन की पहली लोहड़ी होने पर विशेष कर हार बनाये जाते थे. इस बार मैं अपनी दोनों बेटियों की शादी के बाद पहली लोहड़ी होने पर वैसे ही हांर बनाना चाहता था मगर 10-11 जनवरी की रात मेरे पिताजी की  चाची  (श्रीमती रामप्यारी) का इन्तेकाल हो जाने के कारन हमारे  सूतक लग  जाने से लोहड़ी नहीं जलानी है ! 
सूर्य देव के दक्षिणायन होने का त्यौहार अग्नि में नई लकड़ी,  नए चावल, नए तिल और गुड समर्पित करके; हम भारतीय उस ऊर्जा दाता भगवन भास्कर के, अपने इस उत्तरी गोलार्ध में लौटने पर; उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं ; इसी दिन के इंतज़ार में भीष्म पितामह 6 मास तक बाणों की शैया पर पड़े रहे थे ! 
सभी को सूर्य देव अपना बल और तेज प्रदान करें, इसी प्रार्थना के साथ-
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
 Ashok, Tehsildar Hanumamgarh 9414094991     
My Location at Globe 74.2690 E; 29.6095N

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