सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

YAADEN(25) यादें(२५)

मेरे बड़े मामा वेदप्रकाश जी की सरपंच श्योकरण सहारण,  हरी राम कडवासरा तथा दीना नाथ आनंद के साथ दोस्ती थी. इस  नाते मैं इनको मामा ही कहता था. नानुवाला गाँव बसाने  वाले  चौधरी नानुराम के पुत्र श्री श्योकरण गोदारा मेरे स्वर्गीय नाना हरिचंद सेठी के मित्र बन गए थे, इस नाते मैं उनको नाना नानी व् उनके पुत्रो मनीराम गोदारा, महेंद्र गोदारा व् बलराम गोदारा को मामा कहता था. वे बहुत बाद में मेरे नौकरी लगने के आस पास मृत्यु पर्यंत  तक भी मुझसे दौहित्र जैसा ही व्यवहार करते रहे.  सरपंच श्योकरण सहारण मेरे मामाजी को अपने गाँव 38NP ले
गए, मेरे मामाजी ने वहां दुकान की, तब मैं कई बार वहां जाकर रहाउसके बाद बड़े मामाजी बड़े मौसाजी के पास डोईवाला (देहरादून) चले गए उन्होंने भानियावाला में दुकान की.
02.07.1964 वृहस्पतिवार  को मेरे बड़े मामाजी की शादी हुई. मैं पिताजी के साथ जाकर बनारसीदास अनिल कुमार मल्होत्रा की दुकान से कपडे खरीदने गया था. 101/ रुपये के कपडे आये थे. शाम को आठ बजे रेल से जाना था. रायसिंह नगर में दादा गुरादित्तामल के होटल में सब इकट्ठे हुए. छोटे मामा सुभाषचन्द्र जी संदूक उठाने लगे तो उसका तीखा कोने मेरी छोटी बहन सरोज के सिर में लगा और वह बेहोश हो गई . मुश्किल से उसे होश आया. मीटरलाइन की गाड़ी से गंगानगर, हनुमानगढ़ और बठिंडा. आगे बड़ी गाड़ी से अम्बाला, वहा से बदलकर  सहारनपुर. आगे बस पर देहरादून और दूसरी बस पर लच्छीवाला . अपने होश में ये मेरी पहली रेल और बस यात्रा थी. माँ ने बताया की उससे पहले भी वे मुझे लेकर देहरादून गए थे.
मामाजी की शादी में मुझे कई प्रकार के अनुभब हुए. लच्छी वाला में मौसा जी और उनकेभाई लकड़ी की छत वाले दो मंजिला मकानों में रहते थे. बीच में लकड़ी की ही सीढ़ी थी. लगभग हर समय बरसात होती रहती थी. मेरा हम उम्र मौसेर गौरीश्याम उर्फ़ बब्बू मुझे कन्धों पर बिठा कर घूम रहा था. मैंने उसे कहा - अगर मुझे गिराओ तो पक्की जगह पर ही गिरना, कीचड में गिरने से मेरे कपडे ख़राब हो जायंगे. बाद में रिश्तेदारों में  मेरे कथन की खूब चर्चा हुई, उस समय मैं दूसरी पास करके तीसरी में हो चूका था.
उत्तर प्रदेश परिवहन की पीले रंग की बस को हमने झंडियों से सजाया, और बारात प्रेमनगर रवाना हुई. बारात दुसरे दिन दोपहर के खाने तक रुकी. दूर के एक रिश्तेदार डाक्टर के पास
TORCH में छोटा सा पंखा लगा हुआ था, जिससे लग्न मंडप में वो मामाजी को हवा कर रहे थे. दहेज़ में TABLE  FAN  और  TABLE  LAMP  भी थे. इन दोनों चीजों को लेकर मेरे मन में ये विश्वास था की इन दोनों के तार आपस में जोड़ देने से दोनों चलने लगेंगे, सबकी नज़रों से बच कर मैंने थोडा बहुत प्रयास किया भी.
और मैं बड़ा प्रफुल्लित होकर नानुवाला लौटा.  कुछ समय बाद मेरे मझले मामा केदारनाथ जी बड़ी मामी जी निर्मल रानी को नानुवाला लेकर आये. उनको राय सिंह नगर से जीप में लेकर आये, हमने घर में LAUD SPEAKAR लगाया, और उस समय मुझे पंख लगे हुए थे.
     
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
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रविवार, 19 फ़रवरी 2012

YAADEN (24) यादें (24)

तेजा सिंह, गुरमेल सिंह व मेरी मित्रता ठीक थी. उसका एक कारण ये भी थे कि हम तीनो ही पंजाबी हैं; और हमारे परिवारों में भी मिलना जुलना था, हम तीनो के घर स्कूल से लगभग उत्तर दिशा में थे; हालाँकि तेजसिंह का घर नहर पार उत्तर पूर्व कोने पर था और गुरमेल का नहर के किनारे, उस समय हम लगभग नासमझ थे. और एक दुसरे पर भरोसा करते थे; एक दिन हम तीनों साथ-साथ स्कूल से घर रवाना हुए थे; ठाकर सिंह (कैलाश, मोहन सिंह, कर्ण सिंह, नरसिंह, सोमा सुमित्रा) के घर से मुझे अपने घर पश्चिम को मुड़ना था; और उन दोनों को सीधा उत्तर नहर कि तरफ जाना था; तेजा ने मुझे बातों में लगाये रखा, और अचानक गुरमेल ने मेरी पीठ पर मुक्का मारा, और दोनों एकदम से अपने घरों को भाग गए; मेरे भोले मन को, उस दिन पहली बार आस्तीन के सांप का अहसास हुआ था#
पर मैंने न तो शिकायत की; और न ही मित्रता छोड़ी* 

जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
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रविवार, 12 फ़रवरी 2012

YAADEN (23) यादें (२३)

मेरे साथ कक्षा में गुरमेल सिंह, तेजा सिंह, मेरी दोनों मौसियाँ सोमा व कमला हम पांच सहपाठी थे;  हमारे से पीछे मोहन सिंह, श्याम सिंह, जसवीर सिंह, महेंद्र सिंह (राजपूत), सुल्तान सुथार, काशी सुथार, महेंद्रसिंह (छोटा मिंदा), किरना, पदमा और मेरी बुआ सत्या देवी थीं. हमारे से आगे महेंद्र सिंह (बड़ा मिंदा), मदन गोदारा, मेरे चाचा मदन लाल,  श्रीराम, कैलाश देवी, गुड्डी कौर. विश्वनाथ और उसकी बहन बिमला  थीं; उससे आगे कृष्ण मंडा, नत्थू राम सुथार, मनीराम सुथार, बलवीर सिंह, हरदेव सिंह और मेरे चाचा मंगतराम, गुलाब सिंह थे. कच्ची पहली और पक्की पहली मैंने नहर के पार पंचायत घर में चलने वाले स्कूल में पढ़ी और दूसरी तीसरी व चौथी नहर के इस पार नया स्कूल बन जाने पर पढ़े, आजकल ये उच्च प्राथमिक पाठशाला है. बाद में मैं भानियावाला चला गया था.  जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
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रविवार, 5 फ़रवरी 2012

YAADEN (22) यादें(२२)

पिताजी के साथ अक्सर महीने में एक बार तो बाल कटवाने या कोई कपडा बूट-जुराब वगेरा लाने को मेरा रायसिंहनगर जाना हो ही जाता था* उस ज़माने में तहसील से  
KUMAR BROTHERS PETROL PUMP तक सिर्फ पाँच-चार खाने के ढाबेनुमा होटल  थे. बाकि सब सुनसान था.  दीनानाथ कोहली, मेरे पिताजी के रिश्ते में मामा गुरदित्तामल  और  एक कश्मीरी ब्राह्मण सिख; ये तीन  खास ढाबे ठहरने व VEG/NONVEG खाने के थे.सब्जी बाज़ार  भी ढाबे थे.सब्जी मंडी चौराहे से उत्तर को पुलिस थाने की तरफ जानेवाली हरी हलवाई की मशहूर दुकान दक्षिण पश्चिम को खुलती थी ; (वर्तमान जगन्नाथ चिरंजीलाल कपडे वाले के सामनेमुझे पचास ग्राम बर्फी और आध पाव दही की लस्सी या दूध मिलना लाजिमी होता था. बड़े सारे तख़्तपोश पर भारी भरकम सरदार हरीराम का दोनों हाथो से मधानी चलाते, लोटे में दही के माथे जाने, लोहे के उलटे सुए से बर्फ तोड़ने के चटकारे, लोटे से बहार निकलते दही के छींटों की खट्टी-मीठी महक, और अंदर बैठे शहरी  व देहातियों की उर्दू, पंजाबी, राजस्थानी, डोगरी,कश्मीरी, सिन्धी की खिचड़ी बोली. गंगा-जमुनी तहज़ीब; वहां का सारा  मंज़र आज भी मेरे दिलो-दिमाग में जज़्ब है*

जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

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