शनिवार, 24 मार्च 2012

YAADEN (29) यादें (२९)

पिताजी अक्सर दुकान का हिसाब मुझसे करवाते थे. इसलिए मै गणित में
बहुत होशियार था. इसके अलावा रिश्तेदारों को हिंदी के पत्र लिखना और पढना भी मेरे जुम्मे था. इ बार धनीराम जी ने अपनी बहन को देवबंद Money order भेजना था मैंने money order form भरना शुरू किया उसमे उपार लिखा था - पाने वाले का नाम मैंने उसमे भर दिया - धनीराम मार्फ़त जेठाराम पनवाड़ी सब्जी बाज़ार रायसिंहनगर; फिर नीचे लिखा था भेजने वाले का नाम तो मैं चक्कर खा गया की दोनों जगह भेजने वाले का पता नहीं हो सकता form के छपे में खराबी हो सकती है; इसलिए मैंने दुसरे स्थान पर देवबंद का पता लिख दिया दुसरे दिन रायसिंहनगर से लौट कर पिताजी ने मुझे डांटा की ऊपर प्राप्तकर्ता का और नीचे भेजने वाले का पता लिखना चाहिए था; मैं समझ नहीं पा रहा था की फिर डाक खाने वालों ने form के ऊपर पाने वाले का पता क्यों छापा है ? (पंजाबी में पानेवाला के अर्थ है - भेजने वाला)
उस वक़्त moneyorder
form दो नए पैसे का और money order का commission पचास पैसे प्रति दस रुपये था*
   
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
      

रविवार, 18 मार्च 2012

YAADEN(28) यादें (२८)

हमारे गुरूजी जगरूप सिंह जी लापरवाह किस्म के थे* हम सभी विद्यार्थियों को अपनी-अपनी बारी से स्कूल में  झाड़ू सफाई करनी होती थी; एक सुबह जब निरीक्षक आए, कूड़ा दरवाजे के सामने पड़ा था; गुरूजी उस समय तक नहीं आए थे. वर्ष 1978-82 के दौरान मैं नहरी पटवारी था, वे 5 BLM में पदस्थापित थे* एक दिन बस में मैने उन्हें पहचान लिया और चरण-स्पर्श किया. भैराराम जी अनुशासन-प्रिय थे और सख्त-सजा 
 हाथ ऊपर करके खड़ा करना, डंडा या मुर्गा बनाना थी. सेवकसिंह जी व भैराराम जी की लिखावट सुन्दर थी. सेवकसिंह जी संधू का ननिहाल हमारे गाँव में ही था उनको बोलचाल में सुखदेव कहते थे. बाद में लगभग 1985 में मैं निरीक्षक था, और वे पंचायत समिति गंगानगर में थे*
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

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रविवार, 11 मार्च 2012

YAADEN(27) यादें (२७)

गाँव में आने जाने वाले साधू संत और यात्री व्यापारियों के प्रति विश्वास भाव था. उनके ठहरने खाने की व्यवस्थाएं की जाती थी. हमारे घर
भी यदा-कदा साधू-महात्मा या व्यापारी रुकते रहते थे. कथा प्रसंग भी
होते थे. अमृतसर से दो वंजारे पांच-चार महीने में अक्सर फेरी
लगाने आते थे उन में से एक हमारे घर ही रुकते थे. और सुबह जाते
वक़्त मेरी छोटी बहनों सरोज सुशीला व शशि को चूडियाँ देते थे.
गायों के झुण्ड लेकर मिएँ आते थे. हम उनसे 8/- रूपये सेर मक्खन
लेकर 12 / रुपये किलो घी बेचते थे उस वक़्त चना 40 पैसे व गेहूं 50 पैसे किलो खरीदते थे ! 
-- जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
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सोमवार, 5 मार्च 2012

YAADEN(26) यादें (२६)

हमारे गुरूजी ओमप्रकाश जी सरल और सहयोगी स्वाभाव के थे. तीसरी कक्षा में पहली बार लिखित परीक्षा होने से मैं उत्साहित था.प्रश्न था, "कृष्ण के मामा का नाम क्या था?" मैने लिखा 'कंस'. बाद में उन्होंने समझाया लिखना चाहिए,
कृष्ण के मामा का नाम कंस था. शरद पुर्मिमा पर वे हमें नानुवाला कोठी लेकर गए. थाली चम्मच, घर से लेकर गए. वहां खीर बनाई
नहर में नहाये, फिर खीर खाकर वापस आए;
 मेरी चम्मच नहाने धोने के दौरान गुम गई. 
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ