शनिवार, 24 फ़रवरी 2018

Bhopal

Land Acquisition Expert के पदनाम से आज शनिवार २४ फरवरी २०१८ को उत्तरदायित्व सम्भाला है।
पूरे चालीस वर्ष पश्चात् भोपाल में रहने आया हूँ। या यूं कहूं कि सेवा निवृत्ति के बाद एक साल घर पर आराम करके, फिर से कमर कस ली है, अपने आप को परखने की। १९७६-७७ में भोपाल जंकशन के बिल्कुल पास भोपाल होटल में paying guest बनकर रहे थे। ३५ रुपये प्रतिदिन। यूं लगा कि इतना महंगा? चोपड़ा परिवार के साथ घर जैसे ही घुल मिल गए थे। उस वक्त जिस पद का वेतन ३५५ था अाज ३५००० है।
अपनी बात कहूँ; तो लड़कपन ने प्रौढ़ता ओढ़ ली है। बेवकूफियों से समझ मिली। बहुत कुछ खोया, बहुत कुछ पाया। माता पिता व चाचा तो चले ही गए। अपने प्रिय पौत्र को भी उन्होंने अपने पास ही बुला लिया। बेटा अपनी चाची और चचेरी बहिन को भी साथ ही ले गया। बेटियां अपने घरों में, खुशहाल हैं।
भाग्यशाली हूँ, कि दोनों भाई भरत, लक्ष्मण हैं।
 साफ साफ स्वीकार करता हूँ, कि मेरे माता पिता ने जितना अच्छा मेरा लालन पालन किया था, वैसा पिता या पति मैं नहीं बन पाया। सामाजिक सफलताओं की कीमत बाकी परिवार को चुकानी ही पड़ती है। सामाजिक लागतों का यही शाश्वत सिद्धांत है। मेरे सामजिक मूल्यों की कीमत, मेरी पत्नी और बच्चों ने चुकाई है।
हौंसला है, कि भले ही सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में आ गया हूँ। कार्य चिर परिचित ही है। भूमि अवाप्ति के विवादों का निस्तारण करना व करवाना। यह सीधे सीधे सरकारी क्षेत्र से तालमेल है। उत्साहित हूँ, कि राष्ट्रीय स्तर पर भारतमाला व अन्य महत्वाकांक्षी परियोजनाओं से जुड़कर स्वयं को तौलने का सुअवसर ईश्वर ने दिया है।
परमपिता परमेश्वर के सानिध्य में, स्वयं को आबद्ध करता हूँ कि अपनी सुपरिचित कार्यशैली को बनाए रखूँगा। इस मातृभूमि ने सब कुछ दिया है। यथाशक्ति सेवा करूंगा। सामाजिक मूल्यों की कीमत पर समझौता नहीं करूंगा।
चालीस वर्षों में, संचार साधन पूर्णतः बदल गए हैं; इनकी बदौलत राजस्थानी मित्रों से सम्पर्क बना रहेगा।

जयहिंद।